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भारतीय न्‍याय संहिता 2023 धारा 2(34) और 2(36) एवं 2(37)। BNSS 2023 Section 2(34) and 2(36) & 2(37). PART- 5

(21) वसीयत (धारा 2(34))- 

वसीयत से कोई वसीयती दस्‍तावेज अभिप्रेत है; भारतीय उत्‍तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 2 (एच) में इच्‍छापत्र की परिभाषा इस प्रकार की गई है- 

इच्‍छापत्र इच्‍छापत्रकर्ता के अपनी सहम‍ति के संबंध में आशय की एक वैध घोषणा है, जिसे वह अपनी मृत्‍यु के पश्‍चात् प्रभावशील करना चाहता है। इच्‍छापत्र से अभिप्राय सम्‍पूर्ण इच्‍छापत्रीय लिखतों से हैं, जिनमें क्रोडपत्र भी सम्मिलित है। इस प्रकार 'वसीयत' एक वसीयती दस्‍तावेज है। यह एक घोषणा है जिसके द्वारा घोषणा करने वाला व्‍यक्ति अपनी मृत्‍यु के पश्‍चात् अपनी सम्‍पत्ति के प्रबंध आदि के लिए व्‍यवस्‍था करता है। यह वसीयतकर्ता की मृत्‍यु के पश्‍चात् प्रभावी होती है।

भारतीय न्‍याय संहिता 2023 धारा 2(34) और 2(36) एवं 2(37)। BNSS 2023 Section 2(34) and 2(36) & 2(37). PART- 5

(22) सदोष अभिलाभ एवं सदोष हानि (धारा 2(36) एवं 2(37)- 

सदोष अभिलाभ- सदोष अभिलाभ विधि-विरूद्ध साधनो द्वारा ऐसी सम्‍पत्ति का अभिलाभ है जिसका वैध रूप से हकदार अभिलाभ प्राप्‍त करने वाला व्‍यक्ति न हो। सदोष अभिलाभ के लिये किसी सम्‍पत्ति के स्‍वामी को उससे अलग कर दिया जाना आवश्‍यक माना गया है। जहॉं गिरवीग्रहीता गिरवी के साफे का उपभोग मात्र करता है, वहॉं उसे सदोष अधिलाभ नहीं माना जायेगा।

सदोष हानि- सदोष हानि से विधि-विरूद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्‍पत्ति की हानि अभिप्रेत है जिसका वैध रूप से हकदार हानि उठाने वाला व्‍यक्ति हो। 

सदोष हानि सदोष अभिलाभ से संबंधित अपराध है। इसके लिये दो बातें अपेक्षित है-

  1. सम्‍पति का दोषपूर्णतया अर्जन, प्रतिधारण या वंचन; एवं
  2. विधि-विरूद्ध साधन।
अभियुक्‍त द्वारा किसी विधवा से, उसके मृतक पति द्वारा देय ऋण की तुष्टि में, उसके बैलों को अवैध एवं बलपूर्वक तरीके से प्राप्‍त किये जाने 'सदोष हानि' ठहराया गया।
सदोष अभिलाभ प्राप्‍त करना: सदोष हानि उठाना
कोई व्‍यक्ति सदोष अभिलाभ प्राप्‍त करता है तब कहा जाता है जबकि वह व्‍यक्ति सदोष सम्‍पत्ति रखे रहता है और तब भी जबकि  वह व्‍यक्ति सदोष अर्जन करता है। कोई व्‍यक्ति सदोष हानि उठाता है, यह तब कहा जाता है, जबकि उसे किसी सम्‍पत्ति से सदोष अलग रखा जाता है ओर तब भी जबकि उसे किसी सम्‍पत्ति से दोषपूर्णतया  वंचित किया जाता है।‍

इस प्रकार सदोष अभिलाभ एवं सदोष हानि में दो प्रकार के मामले आते  हैं। 1. सम्‍पति का सदोष निरोध में रखा जाना, एवं 2. सम्‍पति का सदोष अलग किया जाना।

महाविद्यालय में व्‍याख्‍यान सुनने हेतु उसमें सम्मिलित होने के लिये शुल्‍क को इस धारा के अर्थों में सम्‍पत्ति माना गया है।
सदोष लाभ एवं सदोष हानि में अंतर- सदोष लाभ एवं सदोष हानि में निम्‍नांकित अंतर पाया जाता है-
सदोष लाभ में व्‍यक्ति सम्‍पत्ति से अवैध लाभ उठाता है  जबकि सदोष हानि में व्‍यक्ति सम्‍पत्ति के संबंध में अवैध हानि उठाता है। सदोष लाभ उठाने वाला व्‍यक्त्ति ऐसे लाभ का  हकदार नहीं होता है, जबकि सदोष हानि उठाने वाले व्‍यक्ति ऐसे लाभ  का हकदार व्‍यक्ति होता है। दोनों में अंतर का मुख्‍य बिंदु 'हकदारव्‍यक्ति'  है। सदोष लाभ में व्‍यक्ति हकदार व्‍यक्ति नही होता है, जबकि सदोष हानि में व्‍यक्ति हकदार व्‍यक्ति होता है। 

Author- Aman Kumar Tomar

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