(21) वसीयत (धारा 2(34))-
वसीयत से कोई वसीयती दस्तावेज अभिप्रेत है; भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 2 (एच) में इच्छापत्र की परिभाषा इस प्रकार की गई है-
इच्छापत्र इच्छापत्रकर्ता के अपनी सहमति के संबंध में आशय की एक वैध घोषणा है, जिसे वह अपनी मृत्यु के पश्चात् प्रभावशील करना चाहता है। इच्छापत्र से अभिप्राय सम्पूर्ण इच्छापत्रीय लिखतों से हैं, जिनमें क्रोडपत्र भी सम्मिलित है। इस प्रकार 'वसीयत' एक वसीयती दस्तावेज है। यह एक घोषणा है जिसके द्वारा घोषणा करने वाला व्यक्ति अपनी मृत्यु के पश्चात् अपनी सम्पत्ति के प्रबंध आदि के लिए व्यवस्था करता है। यह वसीयतकर्ता की मृत्यु के पश्चात् प्रभावी होती है।
(22) सदोष अभिलाभ एवं सदोष हानि (धारा 2(36) एवं 2(37)-
सदोष अभिलाभ- सदोष अभिलाभ विधि-विरूद्ध साधनो द्वारा ऐसी सम्पत्ति का अभिलाभ है जिसका वैध रूप से हकदार अभिलाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति न हो। सदोष अभिलाभ के लिये किसी सम्पत्ति के स्वामी को उससे अलग कर दिया जाना आवश्यक माना गया है। जहॉं गिरवीग्रहीता गिरवी के साफे का उपभोग मात्र करता है, वहॉं उसे सदोष अधिलाभ नहीं माना जायेगा।
सदोष हानि- सदोष हानि से विधि-विरूद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति की हानि अभिप्रेत है जिसका वैध रूप से हकदार हानि उठाने वाला व्यक्ति हो।
सदोष हानि सदोष अभिलाभ से संबंधित अपराध है। इसके लिये दो बातें अपेक्षित है-
- सम्पति का दोषपूर्णतया अर्जन, प्रतिधारण या वंचन; एवं
- विधि-विरूद्ध साधन।
Author- Aman Kumar Tomar
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