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भारतीय न्‍याय संहिता 2023 की धारा 2 को हिंदी में बताइये. BNS 2023 section 2 in hindi.

      भारतीय  न्‍याय संहिता 2023 कि धारा 2 का व्‍याख्‍यान , BNSS 2023 Section -2 

(1) कार्य (धारा 2 (1) - कार्य  शब्‍द कार्यावली का उसी प्रकार द्योतक है जिस प्रकार एक कार्य का। 

ओम प्रकाश के मामले यह कहा गया है कि- कार्य शब्‍द का अर्थ किसी व्‍यक्ति के मात्र किसी विशिष्‍ट, विनिर्दिष्‍ट या तत्‍क्षणिक कार्य से नहीं है। अपितु यह एक क्रमबद्ध कार्य को इंगित करता है।

(2) कूटकरण (धारा 2 (4)- जो व्‍यक्ति एक चीज के सदृश इस आशय से करता है कि वह उस सदृश्‍य प्रवंचना करे, या यह सम्‍भाव्‍य जानते हुए करता है कि उसके द्वारा प्रवंचना की जायेगी, वह 'कूटकरण' करता है, यह कहा जाता है।

कुटकरण के लिये यह आवश्‍यक नहीं है, कि नकल ठीक वैसी ही हो।

केे०हासिम बनाम स्‍टेट ऑफ तमिलनाडु के मामलें में भी उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा यही अभिनिर्धारित किया गया है कि ' कूटकरण के लिए नकल का ठीक वैसा ही होना आवश्‍यक नहीं है। 

''कूटकरण'' के लिए धोखा कारित  करने वाली चीज की सादृश्‍यता मात्र पर्याप्‍त मानी गई है। जहॉं ऐसी सादृश्‍यता का अभाव हो, वहां उसे कूटकरण नहीं कह सकते हैं। जहॉं करेंसी नोटों के कूटकरण का मामला हो, वहॉं करेंसी नोटों में सभी देशों के करेन्‍सी नोट सम्मिलित है केवल भारत के ही नहीं यदि अमेरिकन डालर का कूटकरण किया जाता है तो इस धारा के अन्‍तर्गत उसे भी कूटकरण माना जायेगा।

भारतीय न्‍याय संहिता 2023 की धारा 2 को हिंदी में बताइये. BNS 2023 section 2 in hindi.
भारतीय न्‍याय संहिता 2023 की धारा 2 को हिंदी में बताइये. BNS 2023 section 2 in hindi.

(3) न्‍यायालय धारा 2(5)

'न्‍यायालय' शब्‍द उस न्‍यायाधीश का, जिसे अकेले ही कोई न्‍यायिकत: कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्‍त किया गया हो, या उस न्‍यायाधीश निकाय का, जिसे एक निकाय के रूप में न्‍यायकित: कार्य करने के लिये  विधि द्वारा सशक्‍त किया गया हो, जबकि ऐसा न्‍यायाधीश या न्‍यायाधीश-निकाय न्‍यायिकत: कार्य का रहो हो, अभिप्रेत है।

इस प्रकार न्‍यायालय से अभिप्राय न्‍यायाधीशों के ऐसे न्‍यायालय से है जो- 

  • न्‍यायिक कार्यके लिए सशक्‍त किये गये हों, अथवा
  • न्‍यायिक कार्य करते हों।
कोक के अनुसार- न्‍यायालय एक  ऐसा स्‍थान है जहॉं न्‍याय की न्‍यायिकत: पूर्ति की जाती है। इस शब्‍द की व्‍युत्‍पत्ति नामक आंग्‍ल सूूत्र से हुई है।
यहॉं यह ज्ञातव्‍य है कि दण्‍ड प्रक्रिया संहिता, 1898 की धारा 195 की उपधारा (2) मे प्रयुक्‍त शब्‍द ' न्‍यायालय' का कार्य इस संहिता में प्रयुक्‍त शब्‍द ' न्‍यायालय ' से अधिक विस्‍तृत है।

(4)  बेईमानी धारा 2(7)- बेईमानी से इस आशय से कोई कार्य करना अभिप्रेत है जो एक व्‍यक्ति को सदोष अधिलाभ कारित करे या अन्‍य व्‍यक्ति को सदोष हानि कारित करें।
संहिता में ' बेईमानी' शब्‍द को  इसके प्रचलित रूप से ग्राहा नहीं किया गया है। बेईमानी के लिये जो कुछ आवश्‍यक  है, वह एक व्‍यक्ति को दोषपूर्ण अभिलाभ कारित करना या फिर किसी अन्‍य व्‍यक्ति को दोषपूर्ण हानि कारित करना। इसके लिए दोषपूर्ण अभिलाभ या दोषपूर्ण हानि, दोनों में से एक को आवश्‍यक माना गया है।

(5) दस्‍तावेज धारा 2(8)- दस्‍तावेज शब्‍द ऐसे किसी भी विषय का द्योतक है जिसको किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंकों, या चिह्नों के साधन द्वारा, या  उनमें से एक से अधिक साधनो द्वारा अभिव्‍यक्‍त या वर्णित किया गया हो, और इसके अंतर्गत ऐसे इलैक्‍ट्रानिक और डिजिटल अभिलेख भी हैं जो उस विषय के साक्ष्‍य के रूप में उपयोग किये जाने के लिए आशयित हों या जिसका उपयोग किया जा सके। 
पॉंच व्‍यक्तियों के बीच करार का कोई लिखत, जिस पर यद्यपि केवल दो व्‍यक्तियों के हस्‍ताक्षर हुए हैं, एक दस्‍तावेज है। 
वृक्ष की छाल पर बनाये हुए चिन्‍ह दस्‍तावेज है।
मुद्रा को भी दस्‍तावेज की परिभाषा में सम्मिलित किया  जा सकता है। 
एक कर निर्धारण आदेश इस धारा के अर्थों में दस्‍तावेज है।
(6) कपटपूर्वक- 
शब्‍द 'कपट' की परिभाषा करना अत्‍यंत कठिन है। अब तक कोई न्‍यायाधीश 'कपट' शब्‍द की परिभाषा प्रस्‍तुत नहीं कर पाया है। ऐसा करने में विधिवेत्‍ता या विधि विशेषज्ञ या विधि विशेषज्ञ हिचकिचाहट महसूस करता है।
कोई व्‍यक्ति किसी बात को कपटपूर्वक करता है, यह तब कहा जाता है यदि  वह इस बात को कपट करने के आशय से  करता है अन्‍यथा नहीं,
'कपटपूर्वक' की इस परिभाषा से यह स्‍पष्‍ट है कि यह अवधारण करने में कि कोई कार्य कपटपूर्वक है या  नहीं, आशय  का एक महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। आशय का पता अभियुक्‍त के आचरण से लगाया जा सकता है, लेकिन  वह सदा ही निर्णायक नहीं होता। 

'कपट' के लिये दो बातें अपेक्षित मानी गई है- धोखा एवं  क्षति। केवल धोखा देना मात्र कपट नहीं होगा।

        इस संबंध में डॉ० विमला बनाम दिल्‍ली प्रशासन का एक महत्‍वपूर्ण मामला है।इसमें यह धारण किया गया कि कपट में तत्‍व सम्मिलित है- धोखा एवं क्षति, और ये उस व्‍यक्ति के प्रति किये जाते है। जिसके साथ कपट किया जाता है। इस संदर्भ में 'क्षति' आर्थिक क्षति से  भिन्‍न है इसमें किसी भी प्रकार की हानि का समावेश होता है, चाहे वह शारीरिक, मानसिक, प्रतिष्‍ठागत, अथवा अन्‍य कैसी भी हानि हो । दूसरे शब्‍दों में वह अनार्थिक अथवा धन रहित हानि भी हो सकती है। कपट करने वाले व्‍यक्ति को  होने वाले लाभ से हमेशा उस  व्‍यक्ति को  हानि पहुंचती है जिसके साथ कपट किया जाता है ऐसे भी कई मामले होते हैं जिनमें कपट करने वाले को लाभ नहीं होता, किन्‍तु उस दशा में  भी उपुर्यक्‍त द्वितीय बात की पूर्ति करती है।

'बेेईमानी' एवं 'कपटपूर्वक' में अंतर- डॉ० विमला के उपरोक्‍त वर्णित मामले में ही सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने शब्‍द 'बेईमानी' एवं 'कपटपूर्वक' में निम्‍नलिखित अंतर स्‍पष्‍ट किया है-
  • कपट मे हमेशा धोखा निहित होता है, जबकि बेईमानी मे नहीं।
  • दोषपूर्ण लाभ अथवा दोषपूर्ण हानि 'बेईमानी' के आवश्‍यक तत्‍व माने गये है, जबकि 'कपट' के नहीं।
कुछ कार्य कपट अथवा बेईमानी दोनों से ही हो सकते हैं। परंतु सब कार्य ऐसे नहीं होते। शब्‍द 'कपट' करने के आशय से का अभिप्राय है धोखा कारित करने वाले व्‍यक्ति का फायदा प्राप्‍त करने का लक्ष्‍य रहा हो, या उसे कुछ फायदा होना सम्‍भाव्‍य हो, या किसी अन्‍य व्‍यक्ति को उसी प्रकार की क्षति हो या क्षति होने की सम्‍भावना हो।

(इसी के साथ भारतीय न्‍याय संहिता धारा 2, BNSS 2023 का पार्ट 1 समाप्‍त होता है।)


लेखक- श्री अमन कुमार तोमर

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