भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 2 भाग-2. BNS 2023 section 2, (Part-2) in Hindi
(7) BNSS 2023 लिंग- धारा 2(10)
पुल्लिंगवाचक शब्द 'वह' और उसके व्यूत्पन्नों का प्रयोग किसी भी व्यक्ति के लिए किया जाता है चाहे वह पुरूष या महिला या उभयलिंगी हो।
जनरल क्लाजेज ऐक्ट में व्याकरण के संबंध में दो सुविख्यात सिद्धांत है, जिनमें से एक है- जब तक कि उसमें विषय या संदर्भ से विरूद्ध न हो; ऐसे शब्द जो 'एकवचन' अर्थ के द्योतक हैं, में 'बहुवचन' भी सम्मिलित होंगे, और ऐसे शब्द जिनसे 'पुलिंग' अर्थ का बोध होता हो, उनके अन्तर्गत -'स्त्रीलिंग' शब्द भी आयेंगे।
इस संबंध में मध्य भारत का एक महत्वपूर्ण मामला है। इसमें यह धारणा किया गया है कि जहां सर्वनाम 'वह ' का प्रयोग किया गया हो, वहॉं उसमें पुरूष और स्त्री दोनों सम्मिलित समझे जायेंगे। अत: धारा 354 (धारा 74, भाा०न्या०सं०) के अंतर्गत 'लज्जा भंग' के अपराध के लिये पुरूष एवं स्त्री, दोनों को दोषी ठहराया जा सकता है।
लिंंग के संबंध में नेशनल लीगल सर्विसेज आथॉरिटी बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया का एक उद्धरणीय मामला है। इसमे उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि लिंग से अभिप्राय केवल प्राणिशास्त्रीय लिंग अर्थात् पुरूष या नारी से ही नहीं है। अपितु इसमें ट्रासजेण्डर भी शामिल है।
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| भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 2, भाग-2. BNS 2023 section 2, (Part-2) in Hindi. |
(8) BNSS 2023 सद्वापूर्वक (धारा-2(11)-
कोई बात सद्भावपूर्वक की गई या विश्वास की गई नहीं कही जाती तो सम्यक् सतर्कता और ध्यान के बिना की गई या विश्वास की गई हो।धारा 2(11) में 'सदभावना' को परिभाषित नहीं किया गया है इसमें सिर्फ यह बताया गया है कि ऐसा कार्य जो 'सम्यक् सतर्कता एवं ध्यान' से किया गया हो, सद्भा्भाव से किया गया कार्य है। इस प्रकार सद्भावपूर्वक कार्य के लिये दो बातें आवश्यक मानी गई है- 1. सम्यक् सतर्कता 2. ध्यान।
इस संबंध में स्टेट ऑफ उड़ीसा बनाम भगवान बेरिक का एक महत्वपूर्ण मामला है, जिसमें उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि सद्भावना के लिये केवल दो ही बातें आवश्यक है- सम्यक् सतर्कता एवं ध्यान। इसमें तार्किक अभ्रान्ति को स्थान नहीं दिया जा सकता।
यह 'ईमानदारी' से भिन्न अर्थ का द्योतक है अर्थात् जनरल क्लाजेज ऐक्ट की धारा 3 (22) के अंतर्गत ईमानदारी को सद्भावना का एक आवश्यक तत्व बताया गया, जबकि इस धारा के अंतर्गत ईमानदारी शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है।
इस संबंध मे भाऊजी बनाम मूलजी का एक महत्वपूूर्ण प्रकारण है: इसमें एक पुलिस कांस्टेबल ने एक व्यक्ति को कुछ प्रशन पूछकर गिरफ्तार कर लिया। वह व्यक्ति अपनी कॉंख में तीन बण्डल दबाकर ले जा रहा था। ऐसी मान्यता थी कि उसने उचित सतर्कता के साथ ध्यानपूर्वक कार्य किया है। प्रश्न किये जाने पर यह बात सिद्ध हुई।
इसी प्रकार एक और सुकारू कविराज के मामलें में, जिसमें सुकारू कविराज नाम के व्यक्ति ने एक अन्य व्यक्ति के आंतरिक बवासीर की शल्य क्रिया साधारण चाकू से की ओर उन्हें काटकर बाहर निकाल दिया। लेकिन रक्तस्त्राव के कारण उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई। यह धारण किया गया कि शल्य क्रिया सम्यक् सतर्कता के साथ एवं ध्यानपूर्वक नहीं की गई थी, अत: वह 'सद्भावनापूर्ण' नहीं थी।
''हयात'' के एक और प्रकरण में इस पर विचार किया गया है इसमें अभियुक्त से ग्रामीणों द्वारा तथाकथित एक प्रेतात्मा के स्थान में बहुत सबेरे एक बालक को नीचे झुका हुआ देखा और उसे ग्रमीणों ने प्रेतात्मा समझकर इतना मार कि उसकी वही मृत्यु हो गई। यह धारणा किया गया कि उसने उचित सतर्कता एवं ध्यान से कार्य नहीं किया था।, अत: वह धारा 305 के अंन्तर्गत दोषी है।
'सद्भावनापूर्वक' कार्य करने के लिया गया अभिवाक् असावधानी के आधार पर अस्वीकार किया जा सकता है।
कमशिनर ऑफ इन्कम टैक्स, पटियाला का मामला- इस प्रकरण में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि 'दुराशय का सिद्धांत' कराधान विधियों के अधीन अधिरोपित की जाने वाली शास्तियों पर लागू नहीं होता, क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य राजस्व का शीद्य्र संग्रहण होता है।
अन्तत: यह कहा जा सकता है कि किसी कार्य का सद्भावपूर्वक किया जाना निम्नांकित तीन बातों पर निर्भर करता है।
(9) BNSS 2023 क्षति-
क्षति से कोई अपहानि अभिप्रेत है, जो किसी व्यक्ति के शरीर, मन, ख्याति या सम्पत्ति को अवैध रूप से कारित हुई हो।
क्षति में किसी प्रकार के अपकृत्य अथवा दुष्कृतिजन्य कार्य सम्मिलित है। यह एक ऐसा कार्य है जो विधि के प्रतिकूल हो। यह वही अर्थ रखता है जो 'शब्द' अविधिपूर्ण का है।
किसी नियोक्ता को शोध्य धन से अधिक धन का भुगतान करने के लिये धमकी देना इस धारा के अर्थों में क्षति है।
लेकिन सामाजिक बहिष्कार करने की धमकी क्षति की धमकी नहीं है।
(10) अवैध और करने के लिये वैध रूप से आबद्ध धारा 2(15)-
अवैध शब्द प्रत्येक उस बात को लागू है जो अपराध हो या जो विधि द्वारा प्रतिषिद्ध हो या जो सिविल कार्यवाही के लिये आधार उत्पन्न करती हो और कोई व्यक्ति उस बात को करने के लिये वैध रूप से आबद्ध कहा जाता है जिसका लोप करना उसके लिये अवैध हो।- जो विधि द्वारा प्रतिषिद्ध हो
- जो अपराध हो, या
- जो सिविल कार्यवाही के लिये आधार उत्पन्न करती हो, अवैध है।
(11) BNSS 2023 न्यायाधीश-
- जो किसी विधिक कार्यवाही में, चाहे वह सिविल हो या दण्डिक, अंतिम निर्णय या ऐसा निर्णय जो उसके विरूद्ध अपील न होने पर अंतिम हो जाये या ऐसा निर्णय, जो किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा पुष्ट किये जाने पर अंंतिम हो जाये, देने के लिये विधि द्वारा सशक्त किया गया हो या,
- जो उस निकाय या व्यक्तियों में से एक हो, जिस व्यक्ति-निकाय को ऐसा निर्णय देने के लिये विधि द्वारा सशक्त किया गया है। इस प्रकार 'न्यायाधीश' का मूल तत्व 'अंतिम निर्णय' देने की शक्ति अथवा प्राधिकार है। रिटर्निंग ऑफिसर, जिसे सहकारी समितियोंं की प्रबंधक-समिति के लिये चुनाव लड़े रहे प्रत्याशियों के नामांकन पत्रों की छानबीन करना है, वह न्यायाधीश नहीं है। इस धारा में प्रयुक्त शब्द ''निर्णय'' से अभिप्राय विधि का वह दण्डावेश है जिसे किसी न्यायालय ने अभिलेख में निहित विषय पर उदघोषित किया है। किसी आपराधिक मामले में दोषसिद्धि भी निर्णय होता है। सामान्यत: निर्णय से तात्पर्य उस औपचारिक न्याय निर्णयन से है जिसे न्यायालय ने ऐसे किसी बिन्दु पर प्रदान किया है जिस पर न्यायालय में किसी पक्षकार ने विरोध अथवा दावा प्रस्तुत किया है। 'विधिक' कार्यवाही वह कार्यवाही है जो विधि नियंत्रित अथवा विधि विहित हो और जिसमें न्यायिक निर्णय दिया जा सकता हो अथवा ऐसे निर्णय का देना बाध्य हो। विधिक कार्यवाही वह कार्यवाही है जो विधि नियंत्रित अथवा विधि विहित हों और जिसमें न्यायिक निर्णय दिया जा सकता हो अथवा ऐसे निर्णय का देना बाध्य हो।
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